सिवाना। गढ़ सिवाणा का स्थापना दिवस सिवाना के ऐतिहासिक दुर्ग पर समारोह पूर्वक मनाया गया जिसमें सभी जाति वर्ग के लोगों ने बड़ी संख्या में भाग ...
सिवाना। गढ़ सिवाणा का स्थापना दिवस सिवाना के ऐतिहासिक दुर्ग पर समारोह पूर्वक मनाया गया जिसमें सभी जाति वर्ग के लोगों ने बड़ी संख्या में भाग लिया| उपस्थित वक्ताओं ने सिवाना के ऐतिहासिक पृष्ठभूमि और गौरवपूर्ण इतिहास के बारे में जानकारी देते हुए वर्तमान में सिवाना के स्थापना दिवस को भव्य रूप में मनाने की बात कहीं। समारोह को संबोधित करते हुए नरेंद्र सिंह भायल ने कहा कि प्राचीनकाल में सिवाना को गढ़ सिवाणा के नाम से जाना जाता था। लेकिन कालांतर में यह सिवाना हो गया हैं।
इस प्रकार हमारें गौरवमयी अतीत को तोड़-मरोड़ करके वर्तमान में हमारी सांस्कृतिक विरासत को विस्मृत करने का प्रयास किया गया है जो कतई सही नहीं है। सभी जातियों के लोगों को एक साथ लेकर के गढ़ सिवाना के गौरवशाली अतीत को संजोए रखने के लिए इससे संबंधित स्थापना महोत्सव मनाए और सिवाणा महोत्सव का प्रारंभ करने के लिए कमेटी का गठन करके समय समय पर ऐतिहासिक महत्व के कार्यक्रमों का आयोजन करना चाहिए ताकि हम आने वाली पीढ़ी के लिए सुनहरे अतीत के पृष्ठों को संजोए रख सकें। वही जीत जांगिड़ सिवाणा में कहा कि आज ही के दिन राजा भोज के पुत्र वीर नारायण पंवार ने सिवाणा दुर्ग की नींव रखी थी और सिवाणा कस्बा बसाया था। इस प्रकार की जानकारी हाल ही में क्षेत्र के शिक्षाविद जीवराज वर्मा द्वारा लिखित पुस्तक यादों का झरोखा से भी हमें प्राप्त हुई है| स्वयं राजस्थान का नामी इतिहासकार मुहणोत नैणसी भी अपनी ख्यात में इस प्रकार की बात का जिक्र करता है। यह दुर्ग दिल्ली के सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी और तत्पश्चात अकबर के कहने पर उनके सेनापति मोटा राजा उदयसिंह के आक्रमण का भी प्रतिरोधक रहा है| इस तरह इस दुर्ग में दो शाके हुए हैं| यह हमारे लिए गौरवपूर्ण बात हैंं लेकिन वर्तमान में यह दुर्ग जर्जर होते हुए अपना अस्तित्व खो रहा हैं।
ऐसे में यहां के मूल निवासियों को इस संबंध में सोचते हुए सरकार और प्रशासन से मांग करके किले काे पर्यटन के रूप में विकसित करने का प्रयास करना चाहियें| राजेश जोशी ने कहा कि सिवाणा के शासक वीर कल्ला राठौड़ क्षेत्र की जनता के आस्था के प्रतीक हैं। उनकी समाधी स्थल पर बाबा बीज को लगने वाले मेले को प्रशासनिक सहयोग प्राप्त हो तो इसे और भी लोगों को के संबंध में जानकारी प्राप्त हो सकेगी| साथ ही साथ निकटवर्ती सभी रेलवे स्टेशनों पर सिवाना दुर्ग की प्रतिक्रिया पेश करते हुए चित्र बनाने का काम भी करना चाहिए। गोपालसिंह खेजरली ने सिवाना के परमार वंश पर प्रकाश डालते हुए यहाँ के ऐतिहासिक राजवंशों की जानकारी दी। जिला परीषद सदस्य सोहन सिंह भायल ने कहा कि सिवाना महोत्सव का आयोजन प्रशासनिक स्तर पर हो इसके लिए प्रयास किए जाएंगे| साथ ही साथ आने वाले वर्ष में इस आयोजन को भव्य रुप से मनाने का भी प्रयास किया जाएगा सिवाना की जनता को इस प्रशंसनीय पहल में भागीदार बनना चाहिए| गणपत सिंह गोलिया ने बताया की सिवाणा दुर्ग पर दो शाके हुए हैं। यहां पर स्त्रियों में ज्वालाओ में खुद को झोंक कर जोहर किया है| यह दुर्ग सदा से ही वीर क्षत्रियों के पराक्रम का साक्षी रहा है। अतः अगर हम इसका सरक्षण नहीं कर पाए तो आने वाली पीढ़ियां इसके गौरव में इतिहास से वंचित रह जाएगी। कार्यक्रम को भगवतसिंह भायल, जसवंत सिंह पादरडी, देव शर्मा, कल्याण सिंह गुड़ानाल, महेंद्र सिंह पीपलून ने भी संबोधित किया| अंत में हिंदू सिंह सिणेर ने आभार जताया। इस अवसर पर ओम सिंह तेलवाड़ा, नरेंद्र सिंह जोधा, जितेंद्रसिंह गोलिया, गणपत सिंह तेलवाड़ा, भरत सिंह, कल्याणसिंह सहित कई लोग उपस्थित थे।
इस प्रकार हमारें गौरवमयी अतीत को तोड़-मरोड़ करके वर्तमान में हमारी सांस्कृतिक विरासत को विस्मृत करने का प्रयास किया गया है जो कतई सही नहीं है। सभी जातियों के लोगों को एक साथ लेकर के गढ़ सिवाना के गौरवशाली अतीत को संजोए रखने के लिए इससे संबंधित स्थापना महोत्सव मनाए और सिवाणा महोत्सव का प्रारंभ करने के लिए कमेटी का गठन करके समय समय पर ऐतिहासिक महत्व के कार्यक्रमों का आयोजन करना चाहिए ताकि हम आने वाली पीढ़ी के लिए सुनहरे अतीत के पृष्ठों को संजोए रख सकें। वही जीत जांगिड़ सिवाणा में कहा कि आज ही के दिन राजा भोज के पुत्र वीर नारायण पंवार ने सिवाणा दुर्ग की नींव रखी थी और सिवाणा कस्बा बसाया था। इस प्रकार की जानकारी हाल ही में क्षेत्र के शिक्षाविद जीवराज वर्मा द्वारा लिखित पुस्तक यादों का झरोखा से भी हमें प्राप्त हुई है| स्वयं राजस्थान का नामी इतिहासकार मुहणोत नैणसी भी अपनी ख्यात में इस प्रकार की बात का जिक्र करता है। यह दुर्ग दिल्ली के सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी और तत्पश्चात अकबर के कहने पर उनके सेनापति मोटा राजा उदयसिंह के आक्रमण का भी प्रतिरोधक रहा है| इस तरह इस दुर्ग में दो शाके हुए हैं| यह हमारे लिए गौरवपूर्ण बात हैंं लेकिन वर्तमान में यह दुर्ग जर्जर होते हुए अपना अस्तित्व खो रहा हैं।
ऐसे में यहां के मूल निवासियों को इस संबंध में सोचते हुए सरकार और प्रशासन से मांग करके किले काे पर्यटन के रूप में विकसित करने का प्रयास करना चाहियें| राजेश जोशी ने कहा कि सिवाणा के शासक वीर कल्ला राठौड़ क्षेत्र की जनता के आस्था के प्रतीक हैं। उनकी समाधी स्थल पर बाबा बीज को लगने वाले मेले को प्रशासनिक सहयोग प्राप्त हो तो इसे और भी लोगों को के संबंध में जानकारी प्राप्त हो सकेगी| साथ ही साथ निकटवर्ती सभी रेलवे स्टेशनों पर सिवाना दुर्ग की प्रतिक्रिया पेश करते हुए चित्र बनाने का काम भी करना चाहिए। गोपालसिंह खेजरली ने सिवाना के परमार वंश पर प्रकाश डालते हुए यहाँ के ऐतिहासिक राजवंशों की जानकारी दी। जिला परीषद सदस्य सोहन सिंह भायल ने कहा कि सिवाना महोत्सव का आयोजन प्रशासनिक स्तर पर हो इसके लिए प्रयास किए जाएंगे| साथ ही साथ आने वाले वर्ष में इस आयोजन को भव्य रुप से मनाने का भी प्रयास किया जाएगा सिवाना की जनता को इस प्रशंसनीय पहल में भागीदार बनना चाहिए| गणपत सिंह गोलिया ने बताया की सिवाणा दुर्ग पर दो शाके हुए हैं। यहां पर स्त्रियों में ज्वालाओ में खुद को झोंक कर जोहर किया है| यह दुर्ग सदा से ही वीर क्षत्रियों के पराक्रम का साक्षी रहा है। अतः अगर हम इसका सरक्षण नहीं कर पाए तो आने वाली पीढ़ियां इसके गौरव में इतिहास से वंचित रह जाएगी। कार्यक्रम को भगवतसिंह भायल, जसवंत सिंह पादरडी, देव शर्मा, कल्याण सिंह गुड़ानाल, महेंद्र सिंह पीपलून ने भी संबोधित किया| अंत में हिंदू सिंह सिणेर ने आभार जताया। इस अवसर पर ओम सिंह तेलवाड़ा, नरेंद्र सिंह जोधा, जितेंद्रसिंह गोलिया, गणपत सिंह तेलवाड़ा, भरत सिंह, कल्याणसिंह सहित कई लोग उपस्थित थे।
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