रिपोर्ट @चेतन सुन्देशा बालोतरा। हाळी अमावस्या पर माली समाज द्वारा परम्परागत आने वाले मानसून के शगुन देखनें के कार्यक्रम का आयोजन हुआ। माली...
रिपोर्ट @चेतन सुन्देशा
बालोतरा। हाळी अमावस्या पर माली समाज द्वारा परम्परागत आने वाले मानसून के शगुन देखनें के कार्यक्रम का आयोजन हुआ।
माली समाज भवन के पास आयोजित इस कार्यक्रम में समाज के प्रबुद्धजनों व बुजुर्गों सहित बड़ी संख्या में युवाओं ने भी भाग लिया। समाज के बुजुर्गों के अनुसार सदियों से चली आ रही इस परम्परा को हम आगे बढ़ा रहे है और आगे आने वाली पीढ़ी भी इसमें रूचि ले रही है जो इसको जिन्दा रखने में मददगार साबित होगी। आधुनिक विज्ञान के दौर में आज भी हाळी अमावस्या व आखातीज पर इस पौराणिक रिती-रिवाज से आने वाले मानसून की सटीक भविष्यवाणी की जाती है। इस बार के कार्यक्रम में भी अच्छे मानसून की उम्मीद दिखाई दी है।
इस अवसर पर उदाराम चौहान,मोहनलाल गहलोत,धनराज टांक,मंगलाराम टांंक,मोहनलाल कच्छवाह,चंपालाल परिहार,गोविंद कच्छवाह,जवाराराम सुंदेशा,पूर्व पार्षद सुरेश पंवार,पूर्व पार्षद नैनाराम सुंदेशा,सुजाराम चौहान,माणकचंद गहलोत,डूंगरचंद पंवार,भीमाराम चौहान,प्रेम चौहान सहित बड़ी संख्या में माली समाज के मौजिज लोग उपस्थित थे।
ऐसे देखते है शगुन की परम्परा को
प्रबुद्धजन एक प्रेम सभा के रूप में उपस्थित होते है। उसके बाद एक बाजोट पर 5 प्रकार के मिट्टी के कुल्हड़ लेकर उसमें पानी भरते है। इन मिट्टी के कुल्हड़ को 4 भागों में हिंदू माह असाड़,श्रावण,भाद्रपद्र व आसोज माह के आधार बांटा जाता है। और इसमें पांचवे कुल्हड को थम्ब कहा जाता है ये अगर इन पांच महिनों के पहले फूट जाता है तो उस महिने में बारिश ज्यादा होती है। उसके सामने कई प्रकार के धान जैसे गेहूं,बाजरी आदि को रखा जाता है। इन सब की विधि विधान से पूजा अर्चना कर पानी के कुल्हड़ में ऊन के धागों को रखा जाता है। उसके पश्चात ये कुल्हड़ एक-एक करके फूटने लगते है तो उस महिने में बारिश का अनुमान निकाला जाता है। और मानसून में कैसी बारिश होगी इसका संकेत निकाला जाता है।
बालोतरा। हाळी अमावस्या पर माली समाज द्वारा परम्परागत आने वाले मानसून के शगुन देखनें के कार्यक्रम का आयोजन हुआ।
माली समाज भवन के पास आयोजित इस कार्यक्रम में समाज के प्रबुद्धजनों व बुजुर्गों सहित बड़ी संख्या में युवाओं ने भी भाग लिया। समाज के बुजुर्गों के अनुसार सदियों से चली आ रही इस परम्परा को हम आगे बढ़ा रहे है और आगे आने वाली पीढ़ी भी इसमें रूचि ले रही है जो इसको जिन्दा रखने में मददगार साबित होगी। आधुनिक विज्ञान के दौर में आज भी हाळी अमावस्या व आखातीज पर इस पौराणिक रिती-रिवाज से आने वाले मानसून की सटीक भविष्यवाणी की जाती है। इस बार के कार्यक्रम में भी अच्छे मानसून की उम्मीद दिखाई दी है।
इस अवसर पर उदाराम चौहान,मोहनलाल गहलोत,धनराज टांक,मंगलाराम टांंक,मोहनलाल कच्छवाह,चंपालाल परिहार,गोविंद कच्छवाह,जवाराराम सुंदेशा,पूर्व पार्षद सुरेश पंवार,पूर्व पार्षद नैनाराम सुंदेशा,सुजाराम चौहान,माणकचंद गहलोत,डूंगरचंद पंवार,भीमाराम चौहान,प्रेम चौहान सहित बड़ी संख्या में माली समाज के मौजिज लोग उपस्थित थे।
ऐसे देखते है शगुन की परम्परा को
प्रबुद्धजन एक प्रेम सभा के रूप में उपस्थित होते है। उसके बाद एक बाजोट पर 5 प्रकार के मिट्टी के कुल्हड़ लेकर उसमें पानी भरते है। इन मिट्टी के कुल्हड़ को 4 भागों में हिंदू माह असाड़,श्रावण,भाद्रपद्र व आसोज माह के आधार बांटा जाता है। और इसमें पांचवे कुल्हड को थम्ब कहा जाता है ये अगर इन पांच महिनों के पहले फूट जाता है तो उस महिने में बारिश ज्यादा होती है। उसके सामने कई प्रकार के धान जैसे गेहूं,बाजरी आदि को रखा जाता है। इन सब की विधि विधान से पूजा अर्चना कर पानी के कुल्हड़ में ऊन के धागों को रखा जाता है। उसके पश्चात ये कुल्हड़ एक-एक करके फूटने लगते है तो उस महिने में बारिश का अनुमान निकाला जाता है। और मानसून में कैसी बारिश होगी इसका संकेत निकाला जाता है।
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