मेरापन की भावना को रखना नरी मुर्खता : पदमसागरसूरीश्वर महाराज
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मेरापन की भावना को रखना नरी मुर्खता : पदमसागरसूरीश्वर महाराज

नाकोड़ा में संतो के 30 उपवास की महान् साधना बालोतरा। प्रतिज्ञापूर्वक निराहार रहकर अधिक से अधिक उपवास की तपस्या करना जैनधर्म की आध्यात्मिक सा...

नाकोड़ा में संतो के 30 उपवास की महान् साधना
बालोतरा। प्रतिज्ञापूर्वक निराहार रहकर अधिक से अधिक उपवास की तपस्या करना जैनधर्म की आध्यात्मिक साधना का महŸवपूर्ण अंग हैं। चैवीसवें तीर्थंकर महावीरस्वामी भगवान ने अपने जीवन काल में सर्वाधिक तपस्या की थी, अत: उनकी परंपरा में जैन साधु-साध्वी और गृहस्थजन हमेषा यथाषक्ति छोटी-बड़ी तप-साधना करने का लक्ष्य रखते हैं। दिन में सिर्फ कुछ घंटे उबाला हुआ पानी ग्रहण कर, शेष सभी प्रकार की खाद्य-सामग्री का संम्पूर्णतया परित्याग करते हुए जैन समाज में की जाती एक उपवास से लगाकर निरंतर 180 उपवास की कठोर साधना विज्ञान और सुख-सुविधाओं के युग में भी सभी को आष्चर्य चकित करती हैं। इस वक्तव्य के साथ राष्ट्रसंत आचार्य पद्मसागरसूरीश्वर महाराज के शिष्य क्रांतिकारी प्रवचनकार मुनि विमलसागर महाराज ने मंगलवार को जानकारी दी कि नाकोड़ा जैन तीर्थ में इस बार मुनि कैलासपद्मसागर महाराज एवं मुनि महापद्मसागर महाराज निरंतर 30 दिन के उपवास की कठिन तप-साधना कर रहे हैं। उन्होने बताया कि मूलत: अहमदाबाद निवासी गुजराती जैन परिवार के 28 वर्षीय मुनि कैलासपद्मसागर महाराज ने सिर्फ 12 वर्ष की छोटी सी आयु में दीक्षा अंगीकार की थी। अब तक 24000 किलोमीटर की पदयात्रा कर चुके ये मुनिवर संस्कृत के प्रकांड विद्धान है और इससे पूर्व 36 उपवास की साधना कर चुके हैं।
मुनि महापद्मसागर महाराज मूलत: बंगाली हिन्दू परिवार से हैं। जैन न होते हुए भी वैराग्यवासित होकर उन्होंने सिर्फ 11 वर्ष की छोटी सी आयु में जैन दीक्षा अंगीकार की थी। अब तक 30 हजार किलोमीटर से अधिक पदयात्रा-प्रवास कर चुके इस मुनि ने अनेक भाषाएं सीखी हैं। इससे पूर्व वे दो बार आठ उपवास की साधना कर चुके हैं। मुनि विमलसागर महाराज ने आगे बताया कि दोनों युवा मुनिवर नाकोड़ा तीर्थ में 30 दिन के उपवास का शुभ संकल्प लेकर स्वस्थता पूर्वक आगे बढ़ रहे हैं। मंगलवार को उनके 21 वां उपवास है। 14 अगस्त को 30 उपवास के साथ उनकी यह महान् साधना चरम पर पहुंचेगी। इस उपलक्ष्य में दोनो मुनिवरों के अनेक सांसारिक परिजन व हजारों श्रद्धालु भक्तगाण बंगाल, दिल्ली, महाराष्ट्र, चैन्नई, तमिलनाडु, गुजरात व मुंबई से नाकोड़ा तीर्थ पहुंच रहे हैं। नाकोड़ा में तप महोŸसव की भव्य तैयारियां चल रही हैं।
मैं और मेरेपन को मिटानेवाला ही समझदार
श्री नाकोड़ा पाष्र्वनाथ तीर्थ मेवानगर में चल रहे ऐतिहासिक चातुर्मास की प्रवचन शृंखला में आज राष्ट्रसंत आचार्य श्रीमत् पद्मसागरसूरीष्वर महाराज ने फरमाया कि लबालब दु:खों से भरे संसार में सुख का दर्षन करना हमारा भ्रम है। उन्होंने कहा कि वर्तमान में प्राप्त सभी पौद्गलिक पदार्थ कर्मो से उधार में लिये हुए हैं। जैसे ही समय खत्म होगा इन सभी का वियोग हो जायेगा, अत: इन सभी पदार्थो में मैं और मेरापन की भावना को रखना नरी मुर्खता है। समझदारी तो इसमें है कि इन पौद्गलिक पदार्थो के भावी परिणामों को हम गोर करें। चाहे मकान हो, दुकान हो, परिवार हो, युवावस्था हो या शरीर ये सभी का स्वभाव नष्वर है। ज्ञानियों ने कहा कि समझदार व्यक्ति वही है, जो जीवनलीला समाप्त होने से पहले इन सभी का त्याग कर दें। पूज्यश्री ने कहा कि जिस गति का आयुष्य हम बांधते है वह निष्चिय रूप से भुगतना पड़ता है। क्योंकि आयुष्य कर्म में कोई परिवर्तन नही होता, और अगर संसार के प्रति आसक्त भाव में ही आयुष्य का बंध हो जाये तो सद्गति और मुक्ति दोनो दुर्लभ हो जाती है अत: आत्म-जागृति अति आवष्यक है। आचार्य श्री ने कहा कि मजबूरन संसार में पाप करना भी पड़े तब भी आत्म-जागृति, पाप का डर ही हमें भारी कर्मो के बंध से दूर रखते है, बचाते हैं। जीव की मनोदषा को स्पष्ट करते हुए आचार्यश्री ने कहा कि यह जीव अनादिकालिन संस्कारों की वजह से आषा का दास बना हुआ है, अत: पुण्यतŸव को बिना सोचे-समझे ही सुख पाने की चेष्टा करता है, परन्तु पुण्यहीन होने से सुख तो नही मिलता अपितु आर्तध्यान-रौद्रध्यान के माध्यम से कठिन कर्मों का बंध कर दुर्गति को प्राप्त करता हैं। पूज्यश्री ने कहा की इन सांसारिक विषम परिस्थितियों से हमारा रक्षण धर्म करता है। प्रभु के प्रति की श्रद्धा करती है और प्रभु आज्ञा-पालन का दृढ संकल्प करता है। पन्यांस प्रवर देवेन्द्रसागर महाराज ने सभा को सम्बोधित करते हुए कहा कि ‘सुविधाओं में सुख है‘ ऐसी हमारी मान्यता पूर्णतया सत्य नही है। हमारा जीवन सुविधा-असुविधाओं के बीच ही समाप्त हो जाता है और हम सच्चें सुख से कोसों दूर रह जाते है। विरलें तो वो होते हैं जो सुविधा-असुविधा से परें होकर सच्चे सुख को पाने के लिए प्रयत्नषील होते है। यह बात ही प्रतीत करवाती है कि सुविधा-असुविधा के साथ सुख को कोई संबंध नही हैं।
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